17 जुलाई 2011
लखनऊ। गैर-प्रशासनिक सेवा अधिकारी शशांक शेखर सिंह की उत्तर प्रदेश के कैबिनेट सचिव के रूप में नियुक्ति पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सवाल उठाए जाने के बाद विपक्षी दलों ने शनिवार को शशांक द्वारा प्रदेश सरकार की ओर से लिए गए सभी फैसलों की जांच की मांग की।
समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रवक्ता राजेंद्र ने यहां संवाददाताओं से कहा, "जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय ने शशांक की नियुक्ति की वैधता पर सवाल उठाया है, प्रदेश सरकार स्वत: कटघरे में आ जाती है। फैसला भूमि अधिग्रहण से सम्बंधित हो या अन्य नीतिगत मामलों पर, ये सभी फैसले शशांक शेखर सिंह ने सरकार की तरफ से लिए थे।"
उन्होंने कहा, "प्रदेश के लोग अब यह जानना चाहते हैं कि मायावती ने 2007 में शशांक को कैबिनेट सचिव क्यों चुना। हम उनके द्वारा लिए गए फैसलों की जांच की मांग करते हैं, क्योंकि उन्होंने कई मौकों पर जनता को गुमराह किया है।"
इसी तरह के विचार को दोहराते हुए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रदेश अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही ने कहा कि शशांक शेखर सिंह की नियुक्ति कर मायावती सरकार ने संवैधानिक मानकों का मजाक उड़ाया है।
वहीं कांग्रेस प्रवक्ता अखिलेश प्रताप सिंह ने कहा, "कैबिनेट सचिव का पद मायावती सरकार में सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। गैर-कैडर आधारित अधिकारी की नियुक्ति उस पद के लिए करना तर्कसंगत नहीं लगता है जो जनता के प्रति जवाबदेह है और वह भी सर्वाधिक जनसंख्या वाले राज्य में।"
उल्लेखनीय है कि शशांक शेखर सिंह की नियुक्ति को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को उत्तर प्रदेश सरकार से पूछा था कि उसने किन नियमों के तहत उनकी नियुक्ति की थी।
याचिका में कहा गया है कि शशांक पूर्व पायलट हैं तथा उन्हें कैबिनेट सचिव पद के लिए वांछित प्रशासनिक सेवा का अनुभव नहीं है। उनकी नियुक्ति 13 मई 2007 को मायावती के मुख्यमंत्री का कार्यभार संभालने के तुरंत बाद की गई थी।
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